मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

गणतंत्रता

गणतंत्रता

डॉ0 ओम आचार्य
गणतंत्रता की हर मनुष्य बात कर रहा ।
वह दूसरो के संग किन्तु घात कर रहा॥

अपराध की स्वतंत्रता किसके लिए कहाँ,
यह जानते हुए भी तो उत्पात कर रह॥

सिद्धान्त, समता, एकता की कोरी बात है,
अवसर को देखते ही, जात-पात कर रहा॥

पहचानता नही उसे जिसने बड़ा किया,
बनकर बड़ा, बड़ो से मुलाकात कर रहा॥

कमजोर भीख माँगता है न्याय, दया की,
सुनता नही बलवान वज्रपात कर रहा॥

परदे में झाँकियेगा नही हो रहा है क्या,
देखो सफेदपोश सबको मात कर रहा॥
-डॉ0 ओम आचार्य,
लाइनपार, मुरादाबाद


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