सोमवार, 4 सितंबर 2017

कौन जानता कितनी रातें, सोए नहीं पिता.....

हिन्दी साहित्य संगम की कवि गोष्ठी में कवियों ने व्यक्त किए हृदय के उद्गार 

         हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में दिनाँक 3 सितम्बर, 2017 को मासिक कवि गोष्ठी का आयोजन मिलन विहार, मुरादाबाद स्थित मिलन धर्मशाला में किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ माँ सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित करके किया गया।



          जितेन्द्र कुमार जौली ने अपनी कविता इस प्रकार प्रस्तुत की "फैशन के इस दौर ने, ऐसा किया कमाल। गंजे आज उगा रहे, अपने सिर पर बाल।।" रामसिंह नि:शंक ने "आओ इस देश के विकास में कुछ योगदान करें। पहले दूजों का करें फिर अपना भी कल्याण करें।।" अशोक विद्रोही ने "देखो! देखो! भारत वीरो बौनी सेना आती है। उसे दिखाना भारत की अब 56 इन्ची की छाती है।।" के०पी० सिंह सरल ने "आनन आच्छादित अलक, जलज मधुप आकीर्ण। क्यों पूनम की चाँदनी, बदली करे विदीर्ण।।" राजीव प्रखर ने "इक पौधा रोपा क्यारी में, मुझको भी यह अहसास हुआ। जो अचल-अटल-अविनाशी है, वह कितना मेरे पास हुआ।।" आशुतोष कुलश्रेष्ठ ने "महिला हो वीरांगना हो, क्यों प्रताड़ित फिर भी हो। वेदना दुःख एक बराबर, क्यों ये पीड़ा तुम सहो।।" अखिलेश वर्मा ने "खो दिया जिसने भी भरोसा तो दूर तक वह चला नहीं करता।।" 



       हेमा तिवारी भट्ट ने "एक जंग सीमा पर है, एक जंग सीमा भीतर। वह शत्रु सामने है, यह शत्रु ने दिखे पर।।" डॉ० मनोज रस्तोगी ने "यह सोच कर उदास हैं चौराहों पर लगे बुत, हमारे शहर में वो लहु बहाने निकल पड़े हैं।।" शचीन्द्र भटनागर ने "हम मशालें हाथ में लेकर चले हैं, अब अँधेरे रह ना पाएँगे धरा पर।।" ओंकार सिंह ओंकार ने "जाति मजहब धर्म के झगड़े मिटाने के लिए। आओ! सोचें बीच की दीवार ढाने के लिए।।" रामदेव द्विवेदी ने "हाल और चाल सभी पूछते हैं सबसे यहाँ, टूटे दिलों का मगर कोई भी हमदर्द नही।"  योगेन्द्र वर्मा व्योम ने "बाँसुरी का साथ स्वर से छुट रहा है, भावनाओं का यहाँ दम घुट रहा है। खो गया है आपसी हँसना-हँसाना, नित्य पीड़ा का खजाना लुट रहा है।।" अम्बरीश गर्ग ने "यों तो छुटकी की शादी पर, रोये नहीं पिता। कौन जानता कितनी रातें, सोए नहीं पिता।।" डॉ० महेश दिवाकर ने "रूप बदलकर भेड़िए, पहुँच रहे दरबार। राजा जी हर्षित बड़े, बाँट रहे उपहार।।" प्रशांत मिश्रा ने "छोटी-छोटी खुशियाँ मन महकाती हैं, धीरे-धीरे से दिल में उतर जाती हैं।।" आवरण अग्रवाल 'श्रेष्ठ' ने "कितनी खूबियाँ है मुझमें, मैं कभी समझ नहीं पाया। मैं अपनी उपलब्धियों को कभी गिन नहीं पाया।।"

        कार्यक्रम की अध्यक्षता शचीन्द्र भटनागर ने की। मुख्य अतिथि श्री ओंकार सिंह ओंकार तथा विशिष्ट अतिथि श्री के०पी० सिंह 'सरल' रहे। कार्यक्रम का संचालन श्री राजीव प्रखर ने किया और सरस्वती वन्दना श्री राम सिंह नि:शंक ने प्रस्तुत की।