रोशनी की इक किरण अंधियार में जिन्दा रही
यूँ अदब तहजीब अब व्यवहार में जिन्दा रही
ज्यूं गजल जुम्मे के चित्रहार में जिन्दा रही
रीतियों का हाल ऐसा हो गया त्योहार में
लाज अबला की किसी बाजार में जिन्दा रही
तीरगी ने कोशिशें तो की निगलने की बहुत
रोशनी की इक किरण अंधियार में जिन्दा रही
सूखकर पतझङ में पत्ते सारे जिसके गिर गए
छाँव सूखे ठूँठ की बहार में जिन्दा रही
ढूंढने निकले बहुत हमको न इक भी मिलसकी
नौकरी तो सिर्फ अब अखबार में जिन्दा रही
खत्म हुईं, बेटी बचाओ , बेटी भविष्य की निधि
बेटी तक कुछ ऐसे इश्तिहार में जिन्दा रही
जी रहे थे जिंदगी हम मौत से हो बेखबर
जिंदगी खुद मौत के दीदार में जिन्दा रही
कत्ल कर के बैठे हम "मासूम" यादों का मगर
बात उनकी मेरे हर अश'आर मे जिन्दा रही
-मोनिका 'मासूम'
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