मंगलवार, 9 अगस्त 2016

 गीत-संग्रह 'रिश्ते बने रहें' का किया गया लोकार्पण

गीत-संग्रह 'रिश्ते बने रहें' का किया गया लोकार्पण

साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' एवं 'हिन्दी साहित्य संगम' के संयुक्त तत्वावधान में 5 जून 2016 को सुप्रसिद्ध नवगीतकार श्री योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' के समकालीन गीत-संग्रह 'रिश्ते बने रहें' का लोकार्पण-समारोह मुरादाबाद में मिलन विहार दिल्ली रोड स्थित आकांक्षा इण्टर कॉलेज, के सभागार में संपन्न हुआ l इस अवसर पर एक भव्य काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया l



कार्यक्रम का शुभारंभ वरिष्ठ कवि श्री वीरेन्द्र सिंह 'बृजवासी' द्वारा प्रस्तुत  सरस्वती वंदना से हुआ। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध नवगीतकार श्री माहेश्वर तिवारी ने कहा कि "व्योम के नवगीतों की भाषा इतनी सहज, सरल और बोधगम्य है कि पाठक को शब्दकोश तक जाने की ज़रूरत महसूस नहीं होती। निश्चित रूप से संग्रह 'रिश्ते बने रहें' की रचनाएँ आमजन और कविता के बीच के क्षत-विक्षत पुल की मरम्मत कर उसे आवाजाही के लिए सुगम बनायेंगी।"  कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री बृजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' ने लोकार्पित कृति 'रिश्ते बने रहें' के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि "संग्रह के नवगीत किसी बौद्धिक प्रचंडता की दादागीरी न होकर कसकती संवेदना के भावनात्मक संवाद हैं जो हृदय से निकलकर हृदय तक जाते हैं। संग्रह के नवगीतों में प्रतीक और बिम्ब बिल्कुल नए और अनछुए हैं।" विशिष्ट अतिथि  डॉ. अजय 'अनुपम' ने कहा कि "गीत-संग्रह 'रिश्ते बने रहें' ऐसे भावप्रवण यथार्थ के संवेदनाजन्य समकालीन गीतों का संकलन है जहाँ कड़वे सच को भी भाषा की मीठी चाशनी में पगाकर प्रस्तुत किया गया है।" विशिष्ट अतिथि श्री ओंकार सिंह 'ओंकार' ने कहा कि "आज के बाजारवाद और तकनीकी रूप से विकसित समय में सबसे अधिक क्षति रिश्तों के धरातल पर ही हुई है, संयुक्त परिवारों की परंपरा कहीं खो गई है और लोग अपनी निजता को प्रमुखता दे रहे हैं। ऐसे विद्रूप समय में कृति 'रिश्ते बने रहें' एक ताज़गी भरी उम्मीद जगाती है।" वरिष्ठ साहित्यकार श्री अशोक विश्नोई, डॉ. कृष्ण कुमार 'नाज़' एवं युवाकवि अंकित गुप्ता 'अंक' ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किए l
इस अवसर पर लोकार्पित कृति के रचनाकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने काव्यपाठ करते हुए कहा- "चलो करें/कुछ कोशिश ऐसी/रिश्ते बने रहें। रिश्ते जिनसे/सीखी हमने/बोली बचपन की। संबंधों की/परिभाषाएँ/भाषा जीवन की। कुछ भी हो/ ये अपनेपन के/ रस में सने रहें।" तथा एक और नवगीत प्रस्तुत किया- "छोटा बच्चा/पूछ रहा है/कल के बारे में। अन्तर्धान/हुए थाली से/रोटी-दाल सभी। कहीं खो गए हैं/जीवन के/सुर-लय-ताल सभी। लगता ढूंढ रहे/आशाएँ/ज्यों इकतारे में।" कार्यक्रम का सफल संचालन वरिष्ठ कवि श्री विवेक 'निर्मल' ने किया । आभार अभिव्यक्ति हिन्दी साहित्य  संगम संस्था के अध्यक्ष श्री रामदत्त द्विवेदी ने प्रस्तुत की।
 कार्यक्रम में स्थानीय साहित्यकार सर्वश्री डॉ. आर.सी.शुक्ला, मनोज 'मनु', प्रदीप शर्मा, राजीव 'प्रखर', जितेन्द्र कुमार जौली, रामवीर सिंह 'वीर', यशपाल सिंह 'खामोश', विकास मुरादाबादी, राम सिंह 'निशंक', श्रेष्ठ वर्मा, प्रवीन कुमार, परशुराम 'नयाकबीर', योगेन्द्रपाल सिंह विश्नोई, सतीश 'फिगार', ज़िया ज़मीर, रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ, के.पी.सरल, योगेन्द्र रस्तोगी, शबाव मैनाठेरी, शिशुपाल मधुकर आदि उपस्थित रहे।

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