सोमवार, 24 जून 2013

सतीश सार्थक -तुम कहाँ रह गये (ग़ज़ल)

 तुम कहाँ रह गये (ग़ज़ल)

सतीश सार्थक
मैं गगन बन गया, तुम धरा रह गये 
मैं कहाँ आ गया, तुम कहाँ रह गये 

आँधियों का शमा था चले साथ जब 
हाथ छूटा तो पल में जुदा हो गये 

 धूप मेरा जलाती रही तन-बदन 
छाँव की चाह में तुम हवा हो गये 

सर्दियाँ-गर्मियाँ और बरसात भी
 बदले मौसम बहुत तुम कहाँ खो गये 

राहे-मंज़िल कठिन ग़म न कर 'सार्थक' 
पूरा होगा सफ़र हमसफ़र कह गये 

 -सतीश सार्थक 
पता : एच 6 ई/सी, रेलवे हरथला 
कालोनी, मुरादाबाद (उ0प्र0) 
सम्पर्क सूत्र : ९९२७४०२४९९
 

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