श्री शिशुपाल मधुकर के दोहे
श्री शिशुपाल मधुकर |
मानवता का अर्थ है, सबके सुख की चाह।
घृणा-द्वेष को त्याग कर, चलें न्याय की राह॥
आओ यह जीवन करें, मानवता के नाम।
सोचें सब, कैसे बने, यह जग सुख का धाम॥
छोटा हो या हो बड़ा, अपना हो या ग़ैर।
अपना तो बस धर्म है, चाहूँ सबकी ख़ैर॥
चला समय के साथ जो, समय उसी के साथ।
जो उसको धिक्कारता, मलता रहता हाथ॥
ऊँच-नीच तजकर मिले, जग में अति सम्मान।
जिसका मन निर्मल हुआ, होता वही महान॥
कायर बन मत बैठिए, मान नियति का खेल।
करें निरन्तर साधना, हो गा सुख से मेल॥
घृणा-द्वेष को त्याग कर, चलें न्याय की राह॥
आओ यह जीवन करें, मानवता के नाम।
सोचें सब, कैसे बने, यह जग सुख का धाम॥
छोटा हो या हो बड़ा, अपना हो या ग़ैर।
अपना तो बस धर्म है, चाहूँ सबकी ख़ैर॥
चला समय के साथ जो, समय उसी के साथ।
जो उसको धिक्कारता, मलता रहता हाथ॥
ऊँच-नीच तजकर मिले, जग में अति सम्मान।
जिसका मन निर्मल हुआ, होता वही महान॥
कायर बन मत बैठिए, मान नियति का खेल।
करें निरन्तर साधना, हो गा सुख से मेल॥
-शिशुपाल 'मधुकर'
सी-101, 'प्रकाश पुंज' हनुमार नगर,
सी-101, 'प्रकाश पुंज' हनुमार नगर,
लाइनपार, मुरादाबाद (उ.प्र.)
सम्पर्क सूत : 9412237422
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