उत्तर नहीं किसी के पास
अनसुलझी लिपि है, भाषा है।
जिज्ञासा है, अभिलाषा है॥
संसद डूबी समाधान में।
झाँक रही है संविधान में॥
प्रश्नचिन्ह से अधर खुले हैं, और कंठ में ठहरी प्यास।
प्रश्न उठाते रहे सभी, उत्तर नहीं किसी के पास॥
ज्योतिषियों को हाथ दिखाया।
पोथी-पोथी मन भरमाया॥
गालिब से हालात हो गये।
सबके सब सुकरात हो गये॥
सत्य ढूँढने महल छोड़कर, बुद्ध गये बनवास।
प्रश्न उठाते रहे सभी, उत्तर नहीं किसी के पास॥
-अम्बरीष कुमार गर्ग
लाइनपार, मुरादाबाद (उ0प्र0)
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