रविवार, 6 अगस्त 2017

मैं आँखों की सुन लूँगा, तुम आँखों से बोलो

हिन्दी साहित्य संगम की कवि-गोष्ठी में रचनाकारों ने किया काव्यपाठ

       दिनांक 6 अगस्त, 2017 को हिन्दी साहित्य संगम की माह अगस्त की काव्य-गोष्ठी, आकांक्षा विद्यापीठ, मिलन विहार, मुरादाबाद  में सम्पन्न हुई, जिसमें कविगणों ने विभिन्न ज्वलंत विषयों को अपने काव्य-पाठ के माध्यम से उठाया। राजीव 'प्रखर' ने अपने दोहे में कहा "किस मुख से तू पीटता, आज़ादी का ढोल। जा मिठ्ठू का पिन्जरा, सबसे पहले खोल।


      "प्रदीप शर्मा 'विरल' ने "शब्द न मन के कोई भी तुम, होठों से बोलो। मैं आँखों की सुन लूँगा, तुम आँखों से बोलो। "आशुतोष कुलश्रेष्ठ ने "राखी का बंधन इतना सुदृढ़, भाई बहिन का प्यार। बहिना बाँधे भाई के राखी, देती उसे दुलार। मोनिका शर्मा 'मासूम' ने "सीने में आईने के तू झाँका नहीं कभी। इसने भी राज़े दिल, कोई खोला नहीं कभी ।" हेमा तिवारी भट्ट ने "रिश्तों में बड़ा रिश्ता भाई। प्रिय बहन को होता भाई। उपदेशक रक्षक है भाई, मित्र कभी जनक है भाई।" रामसिंह निशंक ने"आता इक दिन साल मे, रक्षाबन्धन पर्व। हम सबको इस पर सदा, होना चाहिये गर्व।" 

       विकास मुरादाबादी ने "आओ मिलकर बात करें हम, स्वयं को नेक बनाने की। बात करें भारत समाज को, आओ एक बनाने की।" रामदत्त द्विवेदी ने "पास सभी कुछ था उसके पर, फिर भी चैन न मन को था। स्थिति ऐसी बनी न तन पर, कोई वस्त्र कफ़न को था।" रामेश्वर वशिष्ठ ने "आया सावन झूम के, झूलें चमकें खूब।" डॉ. मीना कौल ने "हम हवाओं में विष मत घोलो। सोचो, समझो, परखो, बोलो।" ओंकार सिंह ओंकार ने "आदमी को आदमी से, दुश्मनी क्यों हो गई। इस क़दर मुश्किल जहाँ में, ज़िन्दगी क्यों हो गई।" सतीश 'सार्थक' ने "तेरे मेरे जीवन की ये, कैसी अमिट कहानी रे। सुन्दर-सुन्दर प्यारी-प्यारी, कैसी शाम सुहानी रे।"

        कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री ओंकार सिंह 'ओंकार' ने की। मुख्य अतिथि श्री सतीश 'सार्थक' एवम् विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री रामेश्वर वशिष्ठ तथा डॉ. मीना कौल मंचासीन रहीं। माँ शारदे की वंदना श्री सतीश 'सार्थक' ने प्रस्तुत की एवम् संचालन राजीव 'प्रखर' ने किया। संस्था के अध्यक्ष, श्री रामदत्त द्विवेदी द्वारा आभाराभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें