मंगलवार, 18 जुलाई 2017

हिन्दी साहित्य संगम की कवि-गोष्ठी में रचनाकारों के व्यक्त किए हृदय के भाव

"...और कफ़न पर लग गया, भैया अब तो टैक्स।"

             दिनांक 2 जुलाई, 2017 को हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में आकांक्षा विद्यापीठ इण्टर कॉलेज, मिलन विहार, मुरादाबाद में एक कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ ज्ञान की देवी माँ सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलित करके किया गया। सरस्वती वंदना श्री राम सिंह नि:शंक ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री के. पी. सिंह 'सरल' ने की। मुख्य अतिथि श्री योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई तथा विशिष्ट अतिथि श्री रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ जी रहे। कार्यक्रम का संचालन संगठन के महासचिव जितेन्द्र कुमार जौली द्वारा किया गया।


 
               कार्यक्रम में उपस्थित रचनाकारों ने अपनी कविताओं के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार किया। जी.एस.टी. के संदर्भ में जितेन्द्र कुमार जौली ने कहा, "बातें महँगी हो गयीं, कोई नहीं रिलैक्स। और कफ़न पर लग गया, भैया अब तो टैक्स।", रामसिंह निशंक ने वर्षा ऋतु का वर्णन करते हुए "आई ऋतु पावस की, छाये हैं काले घन। बरखा की फुहार में, प्रमुदित हैं सबके मन।", के. पी. सिंह सरल  ने जी.एस.टी. के संदर्भ में कहा "कुछ चीजें महँगी हुईं,  कुछ पर मिला रिलेक्स। ज्योतिष पर भी लग गया, गुरु शानि का टैक्स।", राजीव प्रखर ने "जात-पात और भेदभाव से, अब लड़ने की बारी है। उठो साथियों आजादी की जंग अभी भी जारी है।", रामदत्त द्विवेदी ने "इन्सानों का इन दिनों नहीं हो रहा नाश। अपितु हिंदुस्तानियत की है घुटती सांस।", ओंकार सिंह ओंकार ने "तपाकर खुद को सोने सा निखारना कितना मुश्किल है, खुद अपनी जिंदगी पुरनूर करना कितना मुश्किल है।", श्री रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ "ईश तुम्हें अर्पण करने को, लाया हूँ कुछ प्रेम सुमन। सुगंध ढूंढ रहा हूँ मधुमय,  फिरता हूँ उपवन-उपवन", योगेंद्रपाल सिंह विश्नोई ने "कुछ नहीं है तो बस नाम ही नाम है, दुनियादारी है तो सैंकड़ों काम हैं। हर किसी को लगी है कमी वक्त की, वक्त का जो धनी वह ही धनवान है।", वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, कहने भर को भाई-भाई, इक-दूजे के भगवानों की, महिमा फूटी आँख में भाई।", शशि त्यागी ने "नाम कमाने को इस जग में कहो न वंदेमातरम्। मन के भीतर भावों के संग होगा वंदेमातरम्।", "हेमा तिवारी भट्ट ने "दलित भले ही सब कहें, है दलहित की बात। राजनीति में जीत की, चाबी समझो जात।"

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