गुरुवार, 29 जून 2017

वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी का गीत : रिश्ते रूठ गए रिश्तों से

रिश्ते रूठ गए रिश्तों से 


रिश्ते रूठ गए रिश्तों से,
प्यार भरा दर्पण चटका है,
होठों की मुस्कान खो गई,
उच्चारण भटका भटका है ।

नैतिकता का भान नहीं है,
सम्बन्धों का ज्ञान नहीं है,
लगता है पावन रिश्तों की,
मानव कॊ पहचान नहीं है,
किस पल कौन तोड़ दे रिश्ता,
हर पल ही रहता खटका है ।
रिश्ते रूठ गए...............

केवल तीन बार कहने से,
रिश्तों का अस्तित्व खो रहा,
अहम, वहम, माया के मद में,
दुर्बल तम व्यक्तित्व हो रहा,
महलों में पलते बच्चों  कॊ,
सड़कों पर लाकर पटका है ।
रिश्ते रुठ गए..............

उसने प्यार बनाया केवल,
नफ़रत तो हमने पाली है ,
झूठा भात साफ करने  कॊ,
ठुकरा दी सच की थाली है।
आसमान से गिर खजूर में,
खुद ही तो आकर अटका है ।
रिश्ते रूठ गए................

रिश्तों कॊ झुठ्लाने वाले,
सब धर्मों में भरे पड़े  हैं ,
अल्प ज्ञान की गागर लेकर,
जहाँ खड़े थे, वहीं खड़े हैं,
आशीषों का अमृत खो कर,
अभिशापों का बिष गट्का है।
रिश्ते रूठ गए.............

रिश्ते तो नाजुक होते हैं,
ऐसे नहीं निभाए जाते,
घर कॊ रौशन करने वाले,
दीपक नहीं बुझाये जाते।
उसे खुदा क्या माफ करेगा ?
दिल कॊ जो देता झटका है ।
रिश्ते रूठ गए...............

-वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी' 
मुरादाबाद ,उ.प्र.
सम्पर्क सूत्र : 09719275453

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