कैसी मजबूरी है (गीत)
अपना तो हर गीत अधूरा, बात अधूरी है।
मर- मर के जीना पड़ता, कैसी मजबूरी है॥
बरगद सी ठंडी छाया यदि कहीं न मिल पाये,
हारा थका बटोही बोलो कैसे सुख पाये।
अन्धकारमय लक्ष्य और, मीलो की दूरी है।
अपना तो हर गीत अधूरा, बात अधूरी है॥
घर से निकल पड़ा हूँ, मेरे साथ नही कोई।
मुझे सहारा दे, ऐसा भी हाथ नहीं कोई॥
ऐसे में साथी का होना, बहुत जरूरी है।
अपना तो हर गीत अधूरा, बात अधूरी है॥
-अशोक विश्नोई
डी-12 अवन्तिका कॉलोनी,
एम.डी.ए., मुरादाबाद- 244001 (उ.प्र.)
ASHOK VISHNOI

Rochakta liye Shaandaar Geet hai Ashok ji.--- Satish ' Sarthak ' Geetkaar Moradabad ( U.P. )
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