सोमवार, 7 नवंबर 2016

राजीव प्रखर का गीत : अपने अंत को मानव ने, खुद ही दावत दे डाली


हरियाली


अपने अंत को मानव ने,
खुद ही दावत दे डाली l
तरुवर छीने धरती से,
ग़ायब कर दी हरियाली l
अपने अंत को मानव ने..

घटता जाये धरा से जल,
घटता जाये रेता l
मूक-बधिर सब बने हुए हैं,
जनता हो या नेता l
कोकिल भी कू-कू करने को,
ढूँढ रही है डाली l
तरुवर छीने धरती से,
ग़ायब कर दी हरियाली l
अपने अंत को मानव ने..

इसी धरा पे मिले हैं पावन,
वेद-बाईबल-गीता l
इसी पे जन्मीं माता मरियम,
इसी पे देवी सीता l
माटी के मूरख पुतले की,
देखो अदा निराली l
तरुवर छीने धरती से,
ग़ायब कर दी हरियाली l
अपने अंत को मानव ने..

आओ मित्रो हरियाली की,
मिलकर अलख जगाएें l
कटे कहीं कोई वृक्ष,
तो बदले में नई पौध लगाऐं l
मिट जाऐंगे अगर न हमने,
आदत ऐसी पाली l
तरुवर छीने धरती से,
ग़ायब कर दी हरियाली l
अपने अंत को मानव ने..

-राजीव 'प्रखर'
निकट राधा कृष्ण मन्दिर,
मौहल्ला डिप्टी गंज,
मुरादाबाद (उ. प्र.)-244 001
सम्पर्क - 8941912642

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