गुरुवार, 1 मार्च 2012

गज़ल-अंकित गुप्ता 'अंक'

गज़ल

अंकित गुप्ता 'अंक'
सच कहो तुम मुझे भुला दोगे।
इस कदर क्या मुझे सजा
दोगे॥
हमने मिलकर जो घर बनाया था।
अपने हाथों से ही जला दोगे॥

हमने मिलकर किये थे जो वादे।
क्या उन्हें खाक मे मिला दोगे॥

तौहमतें हमपे सब लगाऐंगे।
आग को ग़र तुम्हीं हवा दोगे॥

जिसको दरकार हो दुआ की ही।
कौन सी तुम उसे दवा दोगे॥

जिक्र महफिल में जब मेरा होगा।
शर्तिया तुम नजर झुका लोगे॥

खैर अब क्या गिला करूँ तुमसे।
'अंक' अब गौर तुम कहाँ दोगे॥

-अंकित गुप्ता 'अंक'
लाइनपार, मुरादाबाद।

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