सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

डॉ0 ओम आचार्य के दोहे

डॉ0 ओम आचार्य के दोहे

ओम आचार्य
रुप नहीं उसका कोई, नहीं कोई स्थान।
वह कण-कण में व्याप्त है, जान सके तो जान॥

उसको पाने की कला, तू कबीर से सीख।
द्वेष, लोभ, मोह त्याग कर, मांग प्रेम की भीख॥

पाना, खोना, क्या यहाँ, नाशवान संसार।
संग नही कुछ जायेगा, धन, धरती, घर द्वार॥

कण-कण में है व्याप्त जो, निज मन में भी मान।
भीतर ही बैठ हुआ, कर उसकी पहचान॥

उसके होते तू हुआ, चेतन, चलता श्वास।
यही श्वास ले जायेगा, तुझको उसके पास॥

-डॉ0 ओम आचार्य
लाइनपार, मुरादाबाद।

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