मुक्तक
मत चाँद तारे तोड़कर लाने की बात कर।
यह जिन्दगी थोड़ी सी है इसका भरोसा क्या,
यह खुद समझ औरो को समझाने की बात कर॥
मैं नही कहता गगन में मत उड़ो तुम,
जो दिशा भाऐ उधर को ही मुड़ो तुम।
लोग पशुओं से भी बदतर हैं जमीं पर,
कितना अच्छा हो कि इनसे भी जुड़ो तुम॥
अच्छ है स्वस्थ्य के लिए तुम खा रहे हो कम,
उससे भी बहुत अच्छा है तुम खा रहे हो गम।
पीड़ित हैं जो उनकी तरफ भी गौर कीजिए,
दुखियो की सेवा से बड़ा कोई नही धरम॥
-विकास मुरादाबादी
बुद्धि विहार, मुरादाबाद।
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