समर्पण
माँगना तेरी नियति है माँगले मुझसे मुझी को॥
देने वाला दे रहा है रात दिन देता सभी को।
किन्तु बिन माँगे मिला संतोष का धन आदमी को॥
माँगना हितकर नही है ज्ञान इसका हर किसी को।
एक दाता है सभी का दे रहा सब कुछ सभी को॥
दौलत सभी बिखरी पड़ी है यह पता है हर किसी को।
जितनी भी चाहें उठा लो जितनी हिम्मत जिस किसी की॥
बाँट देता है सभी कुछ शर्त केवल एक है।
बन्धु! कुछ पाने से पहले कर समर्पित जिन्दगी को॥
- योगेन्द्रपाल सिंह विश्नोई
एस0 5/123 कृष्णापुरी लाइनपार, मुरादाबाद (उ0प्र0)
YOGENDRA PAL SINGH VISHNOI
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