सोमवार, 2 जनवरी 2017

नववर्ष के नाम रही हिन्दी साहित्य संगम की कवि-गोष्ठी

नववर्ष के नाम रही हिन्दी साहित्य संगम की कवि-गोष्ठी

            दिनाँक 1 जनवरी, 2017 को मुरादाबाद की पिछले पाँच दशकों से सक्रिय संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में मिलन विहार मुरादाबाद आकांक्षा विद्यापीठ इण्टर कॉलेज,  मुरादाबाद में कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मांँ शारदे के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलित करके किया गया। इसके पश्चात श्री वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी जी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने की। मुख्य अतिथि श्री अम्बरीष गर्ग, अति विशिष्ट अतिथि श्री ओंकार सिंह 'ओंकार' एवम् विशिष्ट अतिथि श्री रामदत्त द्विवेदी रहे। कार्यक्रम का संचालन श्री राजीव 'प्रखर' ने किया।

काव्य पाठ करते हुए मनोज मनु

              गोष्ठी में विभिन्न रचनाकारों ने निम्न प्रकार अपनी-अपनी अभिव्यक्ति दी -

जितेन्द्र कुमार 'जौली'-
"नोटबन्दी में पिस रहा, भारत का मजदूर।
रोज़गार उससे हुआ, अब तो कोसों दूर।। "

राजीव 'प्रखर' -
"इक पौधा रोंपा क्यारी में,
मुझको भी यह एहसास हुआ।
जो अचल-अटल-अविनाशी है,
वह कितना मेरे पास हुआ।।",

विकास मुरादाबादी -
"खैरियत हो बूढ़े जवान और बाल की।
सबको ही शुभकामनाएं नये साल की।।"

वीरेन्द्र सिंह 'बृजवासी-
"दूर हुई थाली से रोटी,
पेट हवा से भर लेना।
आज नहीं कल पा जाओगे,
थोड़ा धीरज धर लेना।।"

राम सिंह 'निशंक' -
"हो सत्रह मुबारक वर्ष आपको।
है प्रणाम मेरा सहर्ष आपको।।"

अशोक विश्नोई -
"परस्पर कुछ समझाने को निकट बैठें।
शेष जो भी हैं, उसी पर न ऐंठें।।"

विवेक 'निर्मल -
"आठ पहर में पल दो पल ही,
खुद से बात करें।"

शिशुपाल 'मधुकर' -
"सुनो-सुनो ऐ नये साल,
तुम मेरे घर भी आना।
औरों को इतना देते,
कुछ मुझको भी दे जाना।।"

मनोज वर्मा 'मनु' -
"जीवन हो सुख से भरा,
होवें सतत् विकास।
आपस में जीवित रहें,
मान, हास-परिहास।।"

योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' -
"रहे आपको मंगलकारी यह शुभ नया नवेला वर्ष।
सुख के ढेर लगें आंगन में, घर में करे बसेरा बर्ष।।"

प्रदीप शर्मा 'विरल' -
"बड़े मनचले वो सँवरते नहीं हैं।
हमें देखकर अब लरजते नहीं हैं।।"

के. पी. सिंह 'सरल'-
"नव वर्ष मुबारक हो सबको,
यह खुशियों का संचार करे।"

डॉ. कृष्ण कुमार नाज़ -
"मुसाफ़िर हूँ इक अनजानी डगर का,
कुछ अंदाज़ा नहीं होता सफ़र का।
वो जिसने ज़िन्दगी भर छाँव बाँटी,
मैं पत्ता हूँ उसी बूढ़े शजर का।।"

ओंकार सिंह 'ओंकार' -
"रोज़गार पाने को एड़ियाँ रगड़ता है।
नौजवान इस युग का, दर-ब-दर भटकता है।।"

रामदत्त द्विवेदी -
"अगर चाहते विश्व में,
भारत दिखे सशक्त।
तो विकास की सीट पर,
बैठे शिक्षित शख़्स।।" 

हेमा तिवारी भट्ट -
"इस जीवन में छोड़नी,
हो जो गहरी छाप।
जग सुधारें बाद में,
पहलें सुधरें आप।।"

अम्बरीष गर्ग -
"कुर्सियों के पाँव ही छूते रहे।
आदमी से हम अछूते ही रहे।।"

डॉ. प्रेमवती उपाध्याय -
"सबके हित में रहे वर्ष यह, 
सबका हो उत्कर्ष।
द्वेष-द्रोह की अग्नि शान्त हो,
हर मन में हो हर्ष।।"

रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ -
"आ रहा है साल नया,
सोचकर फ़ैसला कीजिये।"

          अंत में संस्था के अध्यक्ष श्री रामदत्त द्विवेदी ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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