ग़ज़ल
ज़िन्दगी से थकी थकी हो क्या
तुम भी बे वज्ह जी रही हो क्या
देख कर तुम को खिलने लगते हैं
तुम गुलों से भी बोलती हो क्या
तुम को छूकर चमकने लगता हूँ
तुम कोई नूर की बनी हो क्या
मैं तो मुरझा गया हूँ अब के बरस
तुम कहीं अब भी खिल रही हो क्या
इस क़दर जो सजी हुई हो तुम
मेरी ख़ातिर सजी हुई हो क्या
आज यह शाम भीगती क्यों है
तुम कहीं छिप के रो रही हो क्या
सोचता हूँ तो सोचता यह हूँ
तुम मुझे अब भी सोचती हो क्या
इसकी ख़ुशबू नहीं रही वैसी
शहर से अपने जा चुकी हो क्या
-ज़िया ज़मीर
पता : जेड बुक डिपो, चौकी हसन खाँ
मुरादाबाद (उ0प्र0)
सम्पर्क सूत्र : 9319053181,
87556 81225
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